
झंझारपुर से गौतम झा की रिपोर्ट
मैथिली भाषा साहित्य की विशिष्ट विधा बीहनि कथा की स्थापना 5 मार्च 1995 को सर्वसम्मति से हुई थी। तब से हर वर्ष 5 मार्च को “बीहनि कथा दिवस” के रूप में मनाया जाता है। इसी क्रम में 5 मार्च 2025 को राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के द सेंट्रल पार्क में “कथा धारा” के तत्वावधान में इस अवसर पर दो सत्रों में कार्यशाला सह गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में साहित्य प्रेमियों, साहित्यकारों, विद्वानों और मीडियाकर्मियों की उपस्थिति रही।
बीहनि कथा दिवस के प्रथम सत्र में बीहनि कथा के स्वरूप और संभावनाओं पर किया गया मंथन
कार्यक्रम के पहले सत्र में बीहनि कथा की प्रक्रिया, स्वरूप और संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की गई। इस सत्र के मुख्य वक्ता बीहनि कथा के अधिष्ठाता मुन्ना जी ने गहराई से विचार रखते हुए कहा कि बीहनि कथा से जुड़े सभी लेखक और विद्वान उस नींव की तरह हैं, जो स्वयं भले ही दिखाई न दें, लेकिन साहित्य के इस महल को मजबूत बनाने में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने मंच, पुरस्कार और मान्यता से वंचित रहने की संभावना व्यक्त करते हुए कहा कि जब नींव मजबूत होगी, तब इस विधा का विकास भी उतना ही भव्य होगा।
द्वितीय सत्र में बीहनि कथा के रचनाओं का किया गया सजीव पाठ
दूसरे सत्र में उपस्थित रचनाकारों ने बीहनि कथा पाठ किया। कार्यक्रम की शुरुआत जगदानंद झा के मंच संचालन में उदयशंकर झा की रचना “बुद्धि” से हुई। इसके बाद डा. प्रमोद झा गोकुल ने “बिज”, मुन्नी कामत ने “लाठी और हक”, जयन्ती कुमारी ने “लहास एवं सति नारि”, और मुकेश आनंद ने “जीवनक बीहनि कथा” और “कोबला” का पाठ किया। अनिता मिश्र ने “पटिदार” और “सहन शक्ति”, जबकि युवा समालोचक मोहन झा ने “अनैतिक संबंध” की प्रस्तुति देकर आधुनिक सामाजिक परिवेश को प्रभावी रूप से चित्रित किया।
जगदानंद झा मनु ने “पाप पुण्य एवं लहास” शीर्षक से दो रचनाएं प्रस्तुत कीं। युवा राजनेता कुंदन कर्ण ने बीहनि कथा के विकास हेतु एक साहित्यिक संस्था के गठन का प्रस्ताव रखा और अपनी रचनाएं “सहोदरिक शपथ ग्रहण” और “डेरा” का पाठ किए।कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ बीहनि कथाकार डा. आभा झा जी को बैठने में तकलीफ के कारण उनकी रचना “सिनेहक दाम” को डिजिटल माध्यम से प्रो. अजीत झा द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. प्रमोद झा गोकुल ने की और धन्यवाद ज्ञापन जगदानंद झा मनु द्वारा किया गया।