बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और विधान परिषद में विपक्ष की नेता राबड़ी देवी ने बुधवार (27 नवंबर 2024) को बिहार से अलग मिथिला राज्य की मांग की। यह बयान उन्होंने बिहार विधान परिषद के शीतकालीन सत्र के दौरान दिया।
मिथिला राज्य की मांग क्यों उठी?
राबड़ी देवी ने यह मांग तब की जब भाजपा नेता हरि सहनी ने संविधान दिवस के मौके पर नरेंद्र मोदी सरकार की सराहना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने संविधान का मैथिली भाषा में अनुवाद कराकर मैथिली भाषी लोगों का सम्मान किया है।
श्री सहनी ने अपने भाषण में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा मैथिली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़े जाने की बात याद दिलाई। उन्होंने कहा कि अब श्री मोदी ने इसे और आगे बढ़ाते हुए मैथिली में संविधान का संस्करण लाकर क्षेत्र के लोगों का गौरव बढ़ाया है।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए राबड़ी देवी ने कहा, “मैथिली भाषा को सम्मान देना अच्छा कदम है, लेकिन मिथिला राज्य भी बनाया जाना चाहिए।”
सत्र समाप्त होने के बाद राबड़ी देवी ने मीडिया से बात करते हुए कहा,
“केंद्र और राज्य सरकार को इस पर गंभीर कदम उठाना चाहिए। भाजपा के नेताओं को प्रधानमंत्री से बात करनी चाहिए। यदि संविधान का मैथिली में अनुवाद हो सकता है, तो मिथिलांचल को अलग राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिया जा सकता? यह जनता की मांग है, जिसे अब सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए।”
राबड़ी देवी ने यह भी कहा कि यह मांग क्षेत्र की पुरानी इच्छा है, जिसे कई बार आंदोलनों के माध्यम से उठाया गया है।
मिथिला राज्य का राजनीतिक महत्व और आगामी चुनाव
मिथिलांचल क्षेत्र बिहार की 38 में से 20 जिलों है, जिसमें मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, कटिहार, अररिया, बेगूसराय, समस्तीपुर, पूर्णिया और मुजफ्फरपुर शामिल हैं।
इस क्षेत्र में बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 100 से अधिक सीटें आती हैं। आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए विपक्ष इस क्षेत्र पर खास नजर बनाए हुए है, क्योंकि वर्तमान में इन सीटों पर एनडीए का दबदबा है।
राबड़ी देवी की इस मांग के बाद, विपक्षी दलों की नजर मिथिला क्षेत्र के विकास और संभावित वोटों पर है। कुछ समय पहले विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने घोषणा की थी कि अगर 2025 में INDIA गठबंधन सत्ता में आता है, तो मिथिला विकास प्राधिकरण (Mithila Development Authority) का गठन किया जाएगा।
मिथिला राज्य की ऐतिहासिक मांग
मिथिला क्षेत्र में राज्य का दर्जा पाने की मांग नई नहीं है। सबसे पहले 1912 में, जब बिहार बंगाल प्रेसिडेंसी से अलग हुआ था, तब यह मांग उठी थी। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने इसे खारिज कर दिया था। 1921 में दरभंगा राज के महाराजा रमेश्वर सिंह ने इसे फिर से उठाया। इसके बाद कई बार यह मांग दोहराई गई।
यहां तक कि 2018 में भी राबड़ी देवी ने यही मांग उठाई थी। अगस्त 2024 में जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद संजय झा ने मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की भी मांग की थी।
मिथिला की सांस्कृतिक पहचान
मिथिला क्षेत्र की पहचान न केवल मैथिली भाषा से है, बल्कि यहां की मधुबनी पेंटिंग और मिथिला आर्ट ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए यहां के लोगों की राज्य की मांग मजबूत होती जा रही है।
क्या मिथिला को मिलेगा अलग राज्य का दर्जा?
मिथिला को अलग राज्य का दर्जा मिलने की संभावना पर चर्चा तेज हो गई है। मैथिली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करना और संविधान का मैथिली अनुवाद इस दिशा में सकारात्मक कदम माने जा रहे हैं। लेकिन क्या यह मांग पूरी होगी, यह देखना अभी बाकी है।